लड़ाई भी खेल जैसी
“अनेक देशों के बच्चों की यह फ़ौज अलग-अलग भाषा, वेशभूषा, में होकर भी एक जैसी ही है। कई देशों के बच्चों को इक्टठा कर दो, वे खेलेंगे या लड़ेंगे और यह लड़ाई भी खेल जैसी ही होगी।
वे रंग, भाषा जाति पर कभी नहीं लड़ेंगे।”
ऊपर के वाक्यों को पढ़ो और बताओ कि-
क) यह कब, किसने, किसमें और क्यों लिखा?
ख) क्या लड़ाई भी खेल जैसी हो सकती है? अगर हां तो कैसे और उस खेल में तुम्हारे विचार से क्या-क्या हो सकता है।
क) यह वाक्य उस समय लिखा गया जब केशव शंकर ने चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इस वाक्य को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शंकर्स वीकली के बाल विशेषांक में लिखा था। नेहरू जी को बच्चों से बहुत लगाव था। वो इस प्रतियोगिता के आयोजन से बहुत खुश थे। वो पूरे देश को एकसाथ देखना एक साथ देखने की इच्छा रखते थे और उनकी ये ख्वाहिश इन बच्चों ने पूरी कर दी थी।
ख) हां, लड़ाई भी खेल जैसी हो सकती है। जब बच्चे आपस में लड़ते हैं तो उनको देखकर अक्सर ऐसा लगता है कि खेल रहे हैं। बच्चों का मन कोमल होता है। उनमें हिंसा जैसी कोई भावना नहीं होती है। बच्चे अक्सर खिलौनों के लिए लड़ते हैं। कभी घर घर खेलते भी लड़ पड़ते हैं। बच्चों या बड़ों को खेल वाली ही लड़ाई लड़नी चाहिए। बड़ों की लड़ाई में अक्सर हिंसा देखने को मिलती है। ऐसी लड़ाई समाज को खराब करने का काम करती है। मानव को हर काम ऐसा करना चाहिए जो खेल खेल में हो जाए, चाहे फिर वो लड़ाई ही क्यों ना हो।